UPPSC 2023 Mains GS Paper-1
निर्धारित समय: तीन घंटे
[अधिकतम अंक: 200]
विशेष अनुदेश:
(i) कुल 20 प्रश्न दिए गए हैं। खंड–अ से 10 प्रश्न लघु उत्तरीय हैं, जिनके प्रत्येक उत्तर की शब्द–सीमा 125 तथा खंड–ब से 10 प्रश्न दीर्घ उत्तरीय हैं, जिनके प्रत्येक उत्तर की शब्द–सीमा 200 निर्धारित है।
जो हिंदी और अंग्रेजी दोनों में छपे हैं।
(ii) सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
(iii) प्रत्येक प्रश्न/भाग के लिए निर्धारित अंक उसके सामने दिए गए हैं।
(iv) प्रश्नों में संगत शब्द–सीमा का ध्यान रखें।
(v) उत्तर पुस्तिका में खाली छोड़े गए कोई पृष्ठ अथवा पृष्ठ का भाग पूर्णतः काट दें।
UPSC/UPPCS/PCS के प्रश्नों का सही और प्रभावी उत्तर देना एक कला है, जिसे अभ्यास और संरचनात्मक दृष्टिकोण से विकसित किया जा सकता है। यहां बताए गए स्टेप्स का पालन करके आप अपने उत्तरों को न केवल बेहतर बना सकते हैं, बल्कि इंटरव्यू कॉल तक पहुंचने के अपने अवसर भी बढ़ा सकते हैं।
उत्तर लिखने की सही रणनीति:
1. प्रस्तावना (Introduction):
- प्रश्न का सार समझें:
प्रश्न को ध्यान से पढ़ें और उसके मूल उद्देश्य को समझें।- प्रस्तावना में प्रश्न की मुख्य विषयवस्तु का संक्षिप्त परिचय दें।
- इसे 2-3 पंक्तियों में सीमित रखें।
- उदाहरण:
यदि प्रश्न महिला सशक्तिकरण पर है, तो प्रस्तावना में इसका महत्व और वर्तमान स्थिति का संक्षिप्त वर्णन करें।
2. मुख्य उत्तर (Main Body):
- संरचना का पालन करें:
मुख्य उत्तर को बिंदुवार (point-wise) या अनुच्छेद (paragraph) के रूप में लिखें।- प्रथम भाग: प्रश्न की सभी डिमांड्स को कवर करें।
- द्वितीय भाग: आंकड़े (data), रिपोर्ट्स, और योजनाओं का उल्लेख करें।
- उदाहरण: “UNDP की रिपोर्ट के अनुसार…”
- सरकारी योजनाओं जैसे “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का उपयोग करें।
- तृतीय भाग: विषय के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं का संतुलन बनाएं।
- डायग्राम/चार्ट: जहां संभव हो, मानचित्र या फ्लोचार्ट बनाएं।
3. निष्कर्ष (Conclusion):
- सकारात्मक दृष्टिकोण:
निष्कर्ष में विषय का सार और संभावित समाधान लिखें।- 2-3 पंक्तियों में समाधान उन्मुख विचार रखें।
- उदाहरण: “महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए, शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता पर ध्यान देना अत्यावश्यक है।”
उत्तर लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें:
- भाषा सरल और प्रभावी रखें:
तकनीकी शब्दावली का अधिक प्रयोग न करें। - प्रश्न के अनुरूप शब्द सीमा का पालन करें:
- लघु उत्तरीय: 125 शब्द।
- दीर्घ उत्तरीय: 200 शब्द।
- समय प्रबंधन:
उत्तरों को संतुलित समय में लिखें। - योजना का उल्लेख:
- “स्वच्छ भारत अभियान”, “PM किसान सम्मान निधि”, आदि।
- तथ्य और रिपोर्ट का उपयोग:
- NITI आयोग, NSSO, विश्व बैंक, और UNDP की रिपोर्ट्स का उपयोग करें।
- डायग्राम का महत्व:
उत्तर को अधिक प्रभावी बनाने के लिए नक्शे और चार्ट का प्रयोग करें।
प्रश्न 1: वैदिक साहित्य का परिचय दीजिए।
परिचय: वैदिक साहित्य भारतीय सभ्यता की आधारशिला है। यह चार वेदों – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद – पर आधारित है, जो भारतीय संस्कृति, धर्म, और दर्शन के प्रारंभिक स्रोत माने जाते हैं।
मुख्य उत्तर: वैदिक साहित्य को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है – संहिताएँ और ब्राह्मण, आरण्यक, और उपनिषद। ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है, जिसमें 1,028 मंत्र हैं और यह देवताओं की स्तुति के रूप में रचित है। यजुर्वेद यज्ञ पद्धति और अनुष्ठानों का विवरण देता है। सामवेद संगीत और मंत्रों का संगम है, जिसे देवताओं की स्तुति के लिए गाया जाता था। अथर्ववेद में जादू, चिकित्सा और दैनिक जीवन के नियम शामिल हैं। इसके साथ ही ब्राह्मण ग्रंथ यज्ञों की प्रक्रिया को समझाते हैं, आरण्यक ग्रंथ ध्यान और चिंतन पर बल देते हैं, और उपनिषद वेदांत दर्शन के आधार हैं। वैदिक साहित्य में प्रकृति की महत्ता, सामाजिक नियम, और दार्शनिक गहराई दिखाई देती है। यह ज्ञान का ऐसा स्रोत है जो आज भी प्रासंगिक है।
निष्कर्ष: वैदिक साहित्य केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं, बल्कि यह जीवन के हर पहलू का मार्गदर्शन करते हैं। भारतीय संस्कृति और परंपरा को समझने के लिए वैदिक साहित्य का अध्ययन अनिवार्य है।
प्रश्न 2: आधुनिक शिक्षा में सर सैयद अहमद खान के योगदान पर एक टिप्पणी लिखिए।
परिचय: सर सैयद अहमद खान 19वीं सदी के एक महान समाज सुधारक और शिक्षा-प्रेमी थे। उन्होंने आधुनिक शिक्षा के माध्यम से समाज को प्रगति की राह पर ले जाने का प्रयास किया।
मुख्य उत्तर: सर सैयद अहमद खान ने 1875 में अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की, जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना। उन्होंने पश्चिमी शिक्षा को अपनाने और विज्ञान, गणित, और अंग्रेजी जैसी आधुनिक विषयों को प्राथमिकता देने पर जोर दिया। उनके प्रयासों ने मुस्लिम समुदाय को शिक्षा के प्रति जागरूक किया और उन्हें समाज के मुख्यधारा में शामिल होने का अवसर प्रदान किया। उन्होंने उर्दू भाषा को प्रोत्साहित किया और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए लेख लिखे। उनका मानना था कि शिक्षा ही सामाजिक और आर्थिक सुधार का माध्यम है। उनकी पत्रिका ‘तहज़ीब-उल-अखलाक’ ने शिक्षा के महत्व और समाज सुधार के विचारों को जन-जन तक पहुँचाया।
निष्कर्ष: सर सैयद अहमद खान का योगदान आधुनिक शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य है। उनके प्रयासों ने न केवल मुस्लिम समुदाय को बल्कि पूरे भारतीय समाज को शिक्षा की शक्ति का एहसास कराया।
प्रश्न 3: स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत भारत के एकीकरण में सरदार पटेल की भूमिका की विवेचना कीजिए।
परिचय: स्वतंत्रता के समय भारत 500 से अधिक रियासतों में विभाजित था। सरदार वल्लभभाई पटेल ने इन रियासतों को एकीकृत कर एक सशक्त और संगठित भारत का निर्माण किया।
मुख्य उत्तर: सरदार पटेल को ‘लौह पुरुष’ कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने कठिन परिस्थितियों में दृढ़ता और चतुराई से कार्य किया। उनके नेतृत्व में रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करने के लिए कूटनीतिक और सामरिक उपाय अपनाए गए। उन्होंने ‘राज्य पुनर्गठन योजना’ के तहत रियासतों को समझाया कि भारत में शामिल होना उनके लिए लाभकारी होगा। हैदराबाद, जूनागढ़, और कश्मीर जैसी प्रमुख रियासतों को शांतिपूर्ण और कभी-कभी सैन्य कार्रवाई के माध्यम से भारत में शामिल किया गया। उनकी इस पहल ने भारत को भौगोलिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से एकीकृत बनाया।
निष्कर्ष: सरदार पटेल के अद्वितीय नेतृत्व और प्रयासों के कारण ही आज का अखंड भारत संभव हो पाया है। उनका योगदान हमेशा भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा।
प्रश्न 4: क्षेत्रवाद भारत के विकास में किस प्रकार की बाधाएँ उत्पन्न करता है?
परिचय: क्षेत्रवाद भारतीय समाज में एक ऐसी समस्या है, जो राष्ट्रीय एकता और विकास को प्रभावित करती है। यह क्षेत्रीय हितों को राष्ट्रीय हितों से ऊपर रखने की प्रवृत्ति है।
मुख्य उत्तर: क्षेत्रवाद के कई नकारात्मक प्रभाव हैं। यह क्षेत्रीय असमानता और विकास की खाई को बढ़ाता है। क्षेत्रवाद के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में असंतोष और हिंसा भड़कती है। इसका उदाहरण महाराष्ट्र और बिहार के बीच प्रवासी मजदूरों को लेकर हुए विवादों में देखा जा सकता है। क्षेत्रवाद राजनीतिक अस्थिरता को जन्म देता है, जिससे सरकार की विकास योजनाएँ बाधित होती हैं। इसके अलावा, यह क्षेत्रीय भाषा, संस्कृति, और पहचान को लेकर संघर्ष पैदा करता है, जो सामाजिक सौहार्द्र को नष्ट करता है। औद्योगिक विकास और निवेश में भी बाधाएँ आती हैं, क्योंकि क्षेत्रीय विवादों के कारण निवेशक असुरक्षित महसूस करते हैं। क्षेत्रवाद का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि यह राष्ट्रीय एकता और समरसता को कमजोर करता है।
निष्कर्ष: क्षेत्रवाद पर नियंत्रण पाना आवश्यक है। इसके लिए समान विकास, शिक्षा, और सामाजिक जागरूकता जैसे उपाय अपनाने चाहिए, ताकि एक सशक्त और संगठित भारत का निर्माण हो सके।
प्रश्न 5: ‘बेरोजगारी भारत में व्याप्त निर्धनता का एक मात्र कारण है।‘ – टिप्पणी कीजिए।
परिचय: बेरोजगारी और निर्धनता भारतीय अर्थव्यवस्था की दो प्रमुख समस्याएँ हैं। यह कहना कि निर्धनता का एकमात्र कारण बेरोजगारी है, एकांगी दृष्टिकोण होगा।
मुख्य उत्तर: बेरोजगारी निर्धनता का प्रमुख कारण है, क्योंकि आय के बिना व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता। लेकिन निर्धनता के अन्य कारण भी हैं। अशिक्षा निर्धनता का एक बड़ा कारण है, क्योंकि शिक्षा के अभाव में लोग रोजगार के योग्य नहीं बन पाते। इसके अलावा, संसाधनों का असमान वितरण और भूमि सुधार की धीमी प्रगति भी निर्धनता को बढ़ावा देती है। जनसंख्या वृद्धि से रोजगार की मांग बढ़ती है, लेकिन रोजगार के अवसर सीमित हैं। सामाजिक और लैंगिक असमानता भी निर्धनता का कारण है। गरीबी उन्मूलन के लिए केवल रोजगार सृजन ही नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर भी ध्यान देना आवश्यक है।
निष्कर्ष: निर्धनता एक बहुआयामी समस्या है। इसे हल करने के लिए बेरोजगारी के साथ-साथ अन्य सामाजिक और आर्थिक कारकों पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।
प्रश्न 6: क्या आप सहमत हैं कि भारत में महिलाओं के प्रति अपराधों में वृद्धि हो रही है?
परिचय
भारत में महिलाओं के प्रति अपराध समाज की गहरी समस्या को उजागर करते हैं। यह न केवल समाज की नैतिकता पर सवाल उठाता है, बल्कि महिलाओं की सुरक्षा और स्वतंत्रता को भी सीमित करता है।
मुख्य उत्तर
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या बढ़ रही है। दुष्कर्म, दहेज हत्या, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, और मानव तस्करी जैसे अपराधों की घटनाएँ चिंताजनक हैं। 2021 में 4.28 लाख से अधिक अपराध दर्ज किए गए, जिसमें सबसे अधिक मामले घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न के थे।
महिलाओं के प्रति अपराधों की वृद्धि के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं, जैसे समाज में पितृसत्तात्मक मानसिकता, लैंगिक असमानता, शिक्षा की कमी, और धीमी न्यायिक प्रक्रिया। इंटरनेट और सोशल मीडिया के दुरुपयोग से साइबर अपराध भी बढ़े हैं। हालांकि, सरकार ने महिला सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे निर्भया फंड, महिलाओं के लिए हेल्पलाइन, और कड़े कानून, परंतु जागरूकता और शिक्षा की कमी के कारण उनका प्रभाव सीमित है।
निष्कर्ष
महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध केवल कानूनी समस्या नहीं हैं, यह समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है। इन अपराधों को रोकने के लिए सशक्त कानूनों के साथ-साथ सामाजिक और नैतिक जागरूकता की आवश्यकता है।
प्रश्न 7: ‘महासागर संसाधनों का भंडार है।‘ – संक्षिप्त टिप्पणी
परिचय
महासागर, पृथ्वी के लगभग 70% भाग को आच्छादित करते हुए, अनगिनत प्राकृतिक संसाधनों का भंडार हैं। ये हमारे जीवन और आर्थिक विकास का आधार हैं।
मुख्य उत्तर
महासागर खनिज, ऊर्जा, जैव विविधता और भोजन का प्रमुख स्रोत हैं। इनमें तेल, प्राकृतिक गैस, और समुद्री खनिज जैसे कोबाल्ट और मैग्नीशियम के बड़े भंडार हैं। महासागर से प्राप्त मछलियाँ और अन्य समुद्री जीव लगभग 3 अरब लोगों के लिए प्रोटीन का मुख्य स्रोत हैं।
समुद्री ऊर्जा, जैसे ज्वारीय ऊर्जा और पवन ऊर्जा, अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में नई संभावनाएँ प्रस्तुत करती हैं। महासागर मौसम विज्ञान और जलवायु संतुलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, महासागर व्यापार और परिवहन का एक प्रमुख साधन हैं, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
हालांकि, महासागरों का अत्यधिक दोहन, प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन से उनके संसाधनों पर खतरा उत्पन्न हो रहा है। प्लास्टिक कचरे और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के विनाश को रोकने के लिए त्वरित प्रयासों की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
महासागर मानवता के लिए वरदान हैं, लेकिन उनका सतत उपयोग और संरक्षण अनिवार्य है। उनके संसाधनों का संतुलित उपयोग ही आने वाले पीढ़ियों के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 8: कृषि में मृदा प्रोफाइल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। क्या आप सहमत हैं?
परिचय
मृदा प्रोफाइल किसी क्षेत्र की मिट्टी की संरचना और विशेषताओं को दर्शाता है। यह कृषि की गुणवत्ता और उत्पादकता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।
मुख्य उत्तर
मृदा प्रोफाइल में मिट्टी की विभिन्न परतें (ह्यूमस, टॉपसॉइल, सबसॉइल, और बेस रॉक) शामिल होती हैं। प्रत्येक परत कृषि के लिए अलग-अलग गुण प्रदान करती है। ह्यूमस और टॉपसॉइल पोषक तत्वों और नमी को बनाए रखते हैं, जो फसल के विकास के लिए आवश्यक हैं।
मृदा प्रोफाइल से मिट्टी की उर्वरता, जल निकासी क्षमता, और पीएच स्तर का पता चलता है। यह जानकारी किसानों को उपयुक्त फसल चयन और उर्वरकों के उपयोग में मदद करती है। उदाहरण के लिए, काली मिट्टी कपास की खेती के लिए उपयुक्त है, जबकि बलुई मिट्टी मूंगफली और तरबूज के लिए।
जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक कृषि के कारण मृदा क्षरण हो रहा है, जिससे फसलों की पैदावार घट रही है। इस समस्या को हल करने के लिए मृदा संरक्षण तकनीकों, जैसे टेरस फार्मिंग और ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर का उपयोग आवश्यक है।
निष्कर्ष
मृदा प्रोफाइल कृषि की नींव है। इसका गहन अध्ययन और संरक्षण किसानों और पर्यावरण दोनों के लिए लाभकारी है।
प्रश्न 9: दक्षिण एशिया में रोहिंग्या शरणार्थी पर प्रकाश डालिए।
परिचय
रोहिंग्या शरणार्थी समस्या दक्षिण एशिया की एक प्रमुख मानवीय संकट है। यह मुद्दा म्यांमार के राखिन प्रांत से जुड़ा है, जहां रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय लंबे समय से उत्पीड़न का शिकार है।
मुख्य उत्तर
म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय को नागरिकता से वंचित कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप वे राज्यविहीन हो गए। 2017 में म्यांमार सेना द्वारा हिंसा और नरसंहार के कारण लाखों रोहिंग्या लोग अपने देश से भागने को मजबूर हुए।
इस संकट ने बांग्लादेश, भारत, और अन्य दक्षिण एशियाई देशों पर शरणार्थियों का भार बढ़ा दिया। बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में दुनिया का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर है, जहां लगभग 10 लाख रोहिंग्या शरणार्थी रहते हैं। ये शिविर भोजन, स्वच्छता, और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं।
दक्षिण एशिया में रोहिंग्या समस्या राजनीतिक और सुरक्षा चुनौतियाँ भी उत्पन्न करती है। मानव तस्करी और चरमपंथ का खतरा बढ़ रहा है। समस्या के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और म्यांमार सरकार पर दबाव डालने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
रोहिंग्या शरणार्थी संकट एक मानवीय और क्षेत्रीय चुनौती है। इसका समाधान तभी संभव है जब सभी देश मानवीय दृष्टिकोण अपनाएँ और स्थायी समाधान के लिए प्रयास करें।
प्रश्न 10: नौ नंबर चैनल का सामरिक महत्व पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
परिचय
नौ नंबर चैनल भारत और श्रीलंका के बीच स्थित समुद्री मार्ग है। यह सामरिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मुख्य उत्तर
यह चैनल पाल्क खाड़ी और मन्नार की खाड़ी को जोड़ता है और भारतीय उपमहाद्वीप के समुद्री व्यापार के लिए एक प्रमुख मार्ग है। यह चैनल भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल के लिए रणनीतिक स्थान प्रदान करता है, जिससे समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
इस चैनल का उपयोग कोलंबो और तूतीकोरिन जैसे महत्वपूर्ण बंदरगाहों से माल परिवहन के लिए किया जाता है। यह भारत और श्रीलंका के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को भी मजबूती प्रदान करता है।
हालांकि, इस क्षेत्र में अवैध मछली पकड़ने और समुद्री सीमा विवाद के मुद्दे चिंता का विषय हैं। भारतीय नौसेना इस क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नियमित गश्त करती है।
निष्कर्ष
नौ नंबर चैनल भारत के समुद्री रणनीति और व्यापार का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसका स्थायी विकास और सुरक्षा दोनों देशों के लिए लाभकारी होगा।
प्रश्न 11: नागर शैली के मंदिरों की वास्तुकला विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
परिचय:
भारत में मंदिर वास्तुकला का एक प्रमुख भाग नागर शैली है, जो उत्तरी भारत में विकसित हुई। यह शैली अपनी विशिष्ट संरचना, सादगी, और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है।
मुख्य उत्तर:
- मुख्य संरचना:
नागर शैली में मंदिर का मुख्य भाग गर्भगृह होता है, जिसमें भगवान की मूर्ति प्रतिष्ठित होती है। इसके ऊपर एक उन्नत शिखर (रेखांकित या वृत्ताकार) होता है। - शिखर और कलश:
नागर शैली के मंदिरों में शिखर को अत्यंत ऊँचाई पर रखा जाता है, जो आमतौर पर सीधी रेखाओं में ऊपर की ओर जाता है। इसके शीर्ष पर कलश स्थापित किया जाता है, जो धार्मिक महत्व रखता है। - मंडप और प्रदक्षिणा पथ:
गर्भगृह के सामने एक मंडप होता है, जो पूजा और अनुष्ठान के लिए उपयोग होता है। मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ होता है, जहां भक्त परिक्रमा करते हैं। - अलंकरण और मूर्तिकला:
इस शैली में दीवारों और स्तंभों पर धार्मिक और पौराणिक कहानियों की मूर्तियां उकेरी जाती हैं। नागर शैली की मूर्तियां ललित और आकर्षक होती हैं। - आधार योजना:
मंदिर की आधार योजना वर्गाकार या आयताकार होती है, जो समरूपता और संतुलन का प्रतीक है। - प्रसिद्ध उदाहरण:
- खजुराहो के मंदिर
- ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर
- गुजरात का मोढेरा सूर्य मंदिर
निष्कर्ष:
नागर शैली भारतीय वास्तुकला का एक अमूल्य धरोहर है, जो धार्मिक भावना और कलात्मक उत्कृष्टता का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती है। यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं की गहराई को दर्शाती है।
प्रश्न 12: 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के वैचारिक आयामों को रेखांकित कीजिए।
परिचय:
1857 का स्वतंत्रता संग्राम केवल एक सैनिक विद्रोह नहीं था, बल्कि यह भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में उपनिवेशवाद के खिलाफ एक गहरी वैचारिक चेतना का प्रतीक था। इस संग्राम ने राष्ट्रीयता, सामाजिक सुधार और स्वराज्य जैसे विचारों की नींव रखी।
मुख्य उत्तर:
- राष्ट्रीयता का उदय:
1857 का संग्राम भारतीय जनता की पहली सामूहिक प्रतिक्रिया थी, जिसने “एक भारत” के विचार को जन्म दिया। विभिन्न धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के लोग अंग्रेजी शासन के खिलाफ एकजुट हुए। - धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना:
- अंग्रेजों द्वारा धार्मिक हस्तक्षेप, जैसे सती प्रथा का उन्मूलन और धार्मिक स्वतंत्रता पर हमले, ने भारतीय समाज को आक्रोशित किया।
- गाय की चर्बी और सूअर की चर्बी वाले कारतूस ने सैनिकों में धार्मिक असंतोष को बढ़ावा दिया।
- आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण:
- किसानों और जमींदारों को अंग्रेजों की नीतियों से भारी आर्थिक नुकसान हुआ।
- अंग्रेजी शासन के तहत कारीगरों और व्यापारियों का रोजगार छिन गया, जिससे गुस्सा बढ़ा।
- समाज के हर वर्ग ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद को अपने अस्तित्व के लिए खतरा माना।
- साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष:
संग्राम ने औपनिवेशिक शोषण की क्रूर नीतियों के खिलाफ जागरूकता बढ़ाई। यह संघर्ष केवल सैन्य या राजनीतिक नहीं, बल्कि औपनिवेशिक नीति के समग्र विरोध का प्रतीक था। - संग्राम के नायक:
- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहेब, और बहादुर शाह ज़फ़र जैसे नायकों ने स्वराज्य और स्वतंत्रता का सपना दिखाया।
- इस संग्राम ने भारतीय जनता के भीतर आत्मसम्मान और संघर्ष का बीज बोया।
- वैचारिक प्रभाव:
- 1857 के विद्रोह ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के लिए एक वैचारिक मार्ग प्रशस्त किया।
- “स्वराज” और “स्वदेशी” जैसे विचारों का जन्म इसी आंदोलन की परिणति थी।
निष्कर्ष:
1857 का संग्राम केवल एक विद्रोह नहीं, बल्कि भारतीय समाज में वैचारिक जागृति का आरंभ था। इसने भारतीयों को एकजुटता, स्वतंत्रता और स्वाभिमान के मूल्यों से परिचित कराया, जो आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन की आधारशिला बने।
प्रश्न 13: जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
परिचय:
19वीं शताब्दी में जर्मनी कई छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था। ओटो वॉन बिस्मार्क, जिन्हें “आयरन चांसलर” कहा जाता है, ने अपने कुशल नेतृत्व और राजनीति से जर्मनी को एकीकृत किया। उनका नेतृत्व जर्मनी के एकीकरण की सफलता का प्रमुख कारण था।
मुख्य उत्तर:
- राजनीतिक कुशलता और कूटनीति:
बिस्मार्क ने “रक्त और लौह” की नीति अपनाई, जिसमें सैन्य बल और कूटनीतिक रणनीतियों का उपयोग किया गया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि जर्मनी का एकीकरण प्रशा (प्रशिया) के नेतृत्व में हो। - प्रशिया को सुदृढ़ बनाना:
बिस्मार्क ने प्रशिया की सेना को मजबूत बनाया और उसे जर्मनी के सबसे शक्तिशाली राज्य के रूप में स्थापित किया। उन्होंने सैनिक सुधार और आर्थिक विकास के माध्यम से प्रशिया को एक सशक्त शक्ति बना दिया। - आंतर्राष्ट्रीय राजनीति का उपयोग:
बिस्मार्क ने यूरोपीय शक्तियों के बीच कूटनीतिक संतुलन बनाया:- डेनमार्क युद्ध (1864): प्रशिया और ऑस्ट्रिया ने डेनमार्क को हराया और श्लेसविग-होल्स्टीन पर अधिकार किया।
- ऑस्ट्रिया-प्रशिया युद्ध (1866): ऑस्ट्रिया को हराकर बिस्मार्क ने उत्तरी जर्मन परिसंघ का निर्माण किया।
- फ्रांस-प्रशिया युद्ध (1870-71): फ्रांस को हराने के बाद बिस्मार्क ने दक्षिणी जर्मन राज्यों को भी एकीकृत किया।
- सांस्कृतिक और आर्थिक एकता:
बिस्मार्क ने केवल सैन्य और राजनीतिक रणनीतियों पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि सांस्कृतिक और आर्थिक सुधारों को भी प्राथमिकता दी। उन्होंने Zollverein (एक आर्थिक संघ) का समर्थन किया, जिसने जर्मन राज्यों के बीच आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा दिया। - बिस्मार्क की कूटनीतिक रणनीति:
बिस्मार्क ने आंतरिक और बाहरी विरोधों को खत्म करने के लिए चतुर कूटनीति का सहारा लिया। उनका उद्देश्य जर्मनी को एक शक्तिशाली, आत्मनिर्भर, और प्रशिया-प्रधान राष्ट्र के रूप में स्थापित करना था। - फ्रांस और यूरोप पर प्रभाव:
जर्मनी के एकीकरण के बाद, फ्रांस कमजोर हो गया और यूरोप में शक्ति संतुलन बदल गया। जर्मनी यूरोप की एक प्रमुख शक्ति बनकर उभरा।
निष्कर्ष:
बिस्मार्क की सूझ-बूझ और नेतृत्व ने जर्मनी के एकीकरण को संभव बनाया। उनका दृष्टिकोण न केवल सैन्य था, बल्कि उन्होंने राजनीति, कूटनीति और आर्थिक सुधारों का सफल संयोजन करके जर्मनी को एक सशक्त राष्ट्र बनाया। बिस्मार्क का योगदान जर्मनी के इतिहास में अद्वितीय है।
प्रश्न 14: कोरोना महामारी काल में भारतीय संस्कृति ने विश्व को किस प्रकार से प्रभावित किया?
परिचय:
कोरोना महामारी ने वैश्विक समाज को प्रभावित किया और अनेक बदलाव लाए। इस संकट के दौरान भारतीय संस्कृति ने अपनी गहन परंपराओं, मूल्यों और जीवनशैली के माध्यम से विश्व को एक दिशा प्रदान की। योग, आयुर्वेद, सहनशीलता और सामुदायिक सहयोग जैसे तत्वों ने वैश्विक स्तर पर सकारात्मक प्रभाव डाला।
मुख्य उत्तर:
- योग और ध्यान का प्रचार-प्रसार:
- कोरोना महामारी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य एक प्रमुख चिंता का विषय था। भारतीय संस्कृति में योग और ध्यान ने मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई।
- विश्वभर में योग दिवस और ऑनलाइन योग सत्रों की लोकप्रियता बढ़ी।
- आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा:
- आयुर्वेदिक औषधियों, जैसे काढ़ा, हल्दी, और गिलोय का उपयोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया गया।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी भारत के पारंपरिक औषधियों की सराहना की।
- सह-अस्तित्व और सामुदायिक सहयोग:
- “वसुधैव कुटुंबकम” के सिद्धांत ने महामारी के दौरान विश्व को एक परिवार मानने का संदेश दिया।
- भारत ने अन्य देशों को वैक्सीन और चिकित्सा सहायता प्रदान कर “वैक्सीन मैत्री” अभियान चलाया।
- शाकाहार और स्वस्थ जीवनशैली:
- भारतीय शाकाहारी भोजन और स्वस्थ जीवनशैली ने वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाई।
- हल्दी, अदरक, और तुलसी जैसे भारतीय खाद्य पदार्थों की मांग अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी से बढ़ी।
- आध्यात्मिकता और नैतिक शिक्षा:
- भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिकता और सहिष्णुता ने लोगों को संकट के समय धैर्य और दृढ़ता सिखाई।
- गीता के उपदेशों और भारतीय धर्मग्रंथों से प्रेरित होकर लोगों ने आत्म-सुधार और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया।
- सांस्कृतिक शिक्षा का प्रसार:
- महामारी के दौरान भारतीय संगीत, नृत्य, और कला के ऑनलाइन सत्रों ने भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाया।
- “आत्मनिर्भर भारत” और स्वदेशी उत्पादों के महत्व को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समझा गया।
निष्कर्ष:
कोरोना महामारी के दौरान भारतीय संस्कृति ने मानवता को आत्मबल, सहिष्णुता, और सकारात्मक जीवनशैली का मार्ग दिखाया। योग, आयुर्वेद, और “वसुधैव कुटुंबकम” जैसे सिद्धांतों के माध्यम से भारत ने विश्व को एक नई दिशा प्रदान की। यह संकट भारतीय संस्कृति की सार्वभौमिकता और प्रासंगिकता को उजागर करता है।
प्रश्न 15: महिला सशक्तिकरण में महिला संगठनों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
परिचय:
महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षिक स्तर पर समान अधिकार प्रदान करना। इस प्रक्रिया में महिला संगठनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो महिलाओं के अधिकारों, उनकी सुरक्षा और समानता के लिए काम करते हैं।
मुख्य उत्तर:
- शिक्षा और जागरूकता का प्रसार:
- महिला संगठनों ने शिक्षा को प्राथमिकता दी, जिससे महिलाओं में आत्मनिर्भरता की भावना जागृत हुई।
- “सर्व शिक्षा अभियान” और “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियानों में इन संगठनों का बड़ा योगदान रहा।
- महिला अधिकारों के लिए संघर्ष:
- महिला संगठनों ने महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई। दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा और बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने में ये संगठन अग्रणी रहे।
- “नेशनल कमीशन फॉर वूमेन” और “सेल्फ-एम्प्लॉयड वीमेंस एसोसिएशन (SEWA)” जैसे संगठनों ने महिलाओं के लिए कानूनी और आर्थिक सहायता प्रदान की।
- आर्थिक सशक्तिकरण:
- महिला संगठनों ने महिलाओं को स्वरोजगार, कौशल विकास, और स्वयं सहायता समूह (SHGs) के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाया।
- ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में माइक्रोफाइनेंस योजनाओं के तहत महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त किया गया।
- राजनीतिक भागीदारी बढ़ाना:
- महिला संगठनों ने राजनीतिक आरक्षण और महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने में भूमिका निभाई।
- पंचायतों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण जैसे कदम इन्हीं प्रयासों का परिणाम हैं।
- स्वास्थ्य और सुरक्षा:
- संगठनों ने महिला स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित किया, विशेषकर मातृ स्वास्थ्य और माहवारी स्वच्छता के क्षेत्रों में।
- “नारी शक्ति मिशन” और “महिला हेल्पलाइन 181” जैसी पहलें महिलाओं की सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करने में सहायक हैं।
- सामाजिक सुधारों में योगदान:
- “महिला थाना” और “वन स्टॉप सेंटर” की स्थापना में इन संगठनों का योगदान उल्लेखनीय है।
- यौन उत्पीड़न और कार्यस्थल पर भेदभाव के खिलाफ महिला संगठनों ने कानूनी सुरक्षा के लिए दबाव बनाया।
- महिला सशक्तिकरण के वैश्विक प्रयास:
- भारतीय महिला संगठनों ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण का मुद्दा उठाया।
- “सीडा” और “यूएन वूमेन” जैसे वैश्विक संगठनों के साथ साझेदारी की।
निष्कर्ष:
महिला संगठनों ने महिला सशक्तिकरण की प्रक्रिया में क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं। उनके प्रयासों से महिलाएं आज अधिक सशक्त, आत्मनिर्भर और जागरूक हो रही हैं। महिला संगठनों की यह भूमिका न केवल वर्तमान में बल्कि भविष्य में भी समाज को प्रगतिशील दिशा में ले जाएगी।
प्रश्न 16: शहरीकरण की प्रक्रिया समाज के लिए विकास या विनाश है। अपना मत लिखिए।
परिचय:
शहरीकरण का अर्थ है ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर जनसंख्या और संसाधनों का स्थानांतरण। यह प्रक्रिया आर्थिक विकास, सामाजिक बदलाव और आधुनिकता की दिशा में महत्वपूर्ण है, लेकिन इससे उत्पन्न चुनौतियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
मुख्य उत्तर:
- शहरीकरण के सकारात्मक प्रभाव (विकास):
- आर्थिक विकास: शहरीकरण के साथ औद्योगीकरण, व्यापार और सेवाओं में वृद्धि होती है, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।
- सुविधाओं में सुधार: शहरी क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा संस्थान, और बुनियादी ढांचे (सड़कों, परिवहन) का विकास होता है।
- सामाजिक बदलाव: शहरीकरण से सामाजिक जागरूकता और लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलता है।
- तकनीकी उन्नति: शहरों में नवाचार, विज्ञान और तकनीकी प्रगति को प्रोत्साहन मिलता है।
- जीवन स्तर में सुधार: शहरीकरण से जीवन स्तर ऊंचा होता है और लोगों को बेहतर अवसर मिलते हैं।
- शहरीकरण के नकारात्मक प्रभाव (विनाश):
- अत्यधिक भीड़भाड़: शहरीकरण के कारण जनसंख्या का दबाव बढ़ता है, जिससे यातायात, आवास और अन्य सेवाओं पर दबाव पड़ता है।
- पर्यावरणीय क्षति: वायु और जल प्रदूषण, हरित क्षेत्र की कमी, और कचरे का बढ़ता उत्पादन शहरीकरण के नकारात्मक पहलू हैं।
- असमानता और गरीबी: अनियोजित शहरीकरण से झुग्गी-झोपड़ी की समस्या और सामाजिक असमानता बढ़ती है।
- सांस्कृतिक पतन: शहरीकरण के कारण पारंपरिक मूल्यों और सांस्कृतिक विरासत का क्षरण होता है।
- सामाजिक समस्याएं: बढ़ते अपराध, बेरोजगारी, और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी शहरीकरण की चुनौतियों में शामिल हैं।
- संतुलित दृष्टिकोण:
- शहरीकरण का सकारात्मक प्रभाव तभी संभव है जब यह योजनाबद्ध तरीके से हो।
- स्मार्ट सिटी परियोजनाएं, हरित भवन निर्माण, और बेहतर सार्वजनिक परिवहन जैसे कदम शहरीकरण की चुनौतियों को कम कर सकते हैं।
- ग्रामीण विकास पर भी ध्यान देकर ग्रामीण-शहरी असंतुलन को कम किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
शहरीकरण विकास का प्रतीक है, लेकिन यह विनाश का कारण भी बन सकता है यदि इसे सही तरीके से प्रबंधित न किया जाए। शहरीकरण की प्रक्रिया को योजनाबद्ध और सतत विकास के साथ लागू किया जाना चाहिए, ताकि इसका सकारात्मक प्रभाव समाज के हर वर्ग तक पहुंचे।
प्रश्न 17: भारत में आंतरिक मानव प्रवास के कारणों एवं परिणामों की व्याख्या कीजिए।
परिचय:
भारत में आंतरिक मानव प्रवास एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसमें लोग एक राज्य या क्षेत्र से दूसरे राज्य या क्षेत्र में निवास, रोजगार, शिक्षा, या बेहतर जीवनशैली की तलाश में जाते हैं। इस प्रवास के कई कारण और परिणाम होते हैं, जो सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं।
मुख्य उत्तर:
- आंतरिक प्रवास के कारण:
- आर्थिक कारण:
- रोजगार की तलाश में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर प्रवास।
- औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के कारण रोजगार के नए अवसर।
- शैक्षिक कारण:
- उच्च शिक्षा और बेहतर शैक्षणिक संस्थानों की उपलब्धता।
- ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी।
- सामाजिक कारण:
- शादी, पारिवारिक जिम्मेदारियां, और बेहतर सामाजिक वातावरण।
- प्राकृतिक कारण:
- बाढ़, सूखा, और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण विस्थापन।
- सरकारी नीतियां:
- विकास परियोजनाएं, जैसे बांध निर्माण, सड़क विस्तार, आदि।
- आर्थिक कारण:
- आंतरिक प्रवास के परिणाम:
- सकारात्मक प्रभाव:
- शहरी क्षेत्रों में आर्थिक विकास और कुशल श्रमिकों की उपलब्धता।
- प्रवासियों के माध्यम से विविध सांस्कृतिक आदान-प्रदान।
- परिवारों की आय और जीवन स्तर में सुधार।
- नकारात्मक प्रभाव:
- ग्रामीण क्षेत्रों में श्रम शक्ति की कमी, जिससे कृषि और पारंपरिक उद्योग प्रभावित होते हैं।
- शहरी क्षेत्रों में भीड़भाड़, आवास संकट, और बुनियादी सुविधाओं पर दबाव।
- झुग्गी-झोपड़ी, अपराध, और सामाजिक असमानता में वृद्धि।
- प्रवासियों का शोषण और उनकी पहचान का संकट।
- सकारात्मक प्रभाव:
- सरकार की भूमिका:
- प्रवास के प्रबंधन के लिए योजनाबद्ध शहरीकरण और बुनियादी ढांचे का विकास।
- ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और शिक्षा के अवसर प्रदान करना।
- प्रवासियों के अधिकारों की सुरक्षा और सामाजिक कल्याण योजनाओं का कार्यान्वयन।
- महामारी के दौरान प्रवास:
- कोविड-19 के समय प्रवासियों की समस्याओं ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया।
- घर वापसी, बेरोजगारी, और स्वास्थ्य समस्याएं प्रमुख मुद्दे बने।
निष्कर्ष:
आंतरिक मानव प्रवास भारत के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने का अभिन्न हिस्सा है। यह प्रवास अवसर और चुनौती दोनों प्रदान करता है। प्रवासन की समस्याओं के समाधान के लिए समावेशी और संतुलित नीतियां आवश्यक हैं, ताकि समाज के हर वर्ग को इसका लाभ मिले।
प्रश्न 18: भारत में एल नीनो और दक्षिण-पश्चिम मानसून के बीच संबंधों की व्याख्या कीजिए और उसके कृषि पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
परिचय:
एल नीनो एक महत्वपूर्ण जलवायु घटना है, जो प्रशांत महासागर के तापमान में असामान्य वृद्धि के कारण उत्पन्न होती है। यह घटना भारतीय मानसून पर गहरा प्रभाव डालती है और देश की कृषि अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है।
मुख्य उत्तर:
- एल नीनो और दक्षिण-पश्चिम मानसून का संबंध:
- मानसून पर प्रभाव:
एल नीनो के कारण प्रशांत महासागर के तापमान में वृद्धि होती है, जिससे मानसून की हवाओं की गति कमजोर पड़ जाती है।
इसका सीधा प्रभाव दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा पर पड़ता है, जिससे भारत में सूखे की स्थिति बन सकती है। - इतिहास:
1997, 2002, और 2015 जैसे वर्षों में एल नीनो की वजह से भारत में मानसून कमजोर रहा और सूखे की स्थिति उत्पन्न हुई। - विज्ञान:
यह घटना वॉकर परिसंचरण को बाधित करती है, जो मानसूनी हवाओं को प्रभावित करता है।
- मानसून पर प्रभाव:
- कृषि पर प्रभाव:
- फसल उत्पादन:
- कमजोर मानसून के कारण खरीफ फसलों (जैसे धान, ज्वार, बाजरा) की बुवाई में कमी आती है।
- जल स्रोतों में कमी होने से सिंचाई की समस्या उत्पन्न होती है।
- आर्थिक प्रभाव:
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि अधिकांश किसान मानसून पर निर्भर रहते हैं।
- फसल उत्पादन में कमी होने से खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ जाती हैं।
- पशुधन और मृदा:
सूखे की स्थिति में पशुओं के चारे की कमी हो जाती है और मृदा की उर्वरता घटती है।
- फसल उत्पादन:
- अन्य प्रभाव:
- जलविद्युत उत्पादन में कमी।
- पीने के पानी की समस्या।
- भू-जल स्तर में गिरावट।
निष्कर्ष:
एल नीनो और दक्षिण-पश्चिम मानसून के बीच गहरा संबंध है, जो भारत की कृषि और जलवायु को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। इसके प्रभाव को कम करने के लिए जल प्रबंधन, सूखा-प्रतिरोधी फसलों का विकास, और कृषि में वैज्ञानिक विधियों का उपयोग किया जाना चाहिए।
प्रश्न 19: शीतोष्ण चक्रवात पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। यह भारत को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर:
परिचय:
शीतोष्ण चक्रवात मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में बनने वाली एक वायुमंडलीय घटना है, जो दो अलग-अलग तापमान वाली वायु धाराओं के मिलने से उत्पन्न होती है। यह भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में सर्दियों की बारिश और बर्फबारी का मुख्य कारण है।
मुख्य उत्तर:
- शीतोष्ण चक्रवात क्या है?
- यह वायुमंडलीय दबाव का एक क्षेत्र है, जिसमें हवा केंद्र की ओर घूमती है।
- यह मुख्यतः पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) के रूप में भारत में सर्दियों के दौरान सक्रिय होता है।
- यह घटना उत्तर पश्चिम यूरोप और मध्य एशिया से चलकर भारतीय उपमहाद्वीप तक पहुंचती है।
- भारत पर प्रभाव:
- कृषि पर प्रभाव:
- शीतोष्ण चक्रवात सर्दियों की बारिश का कारण बनता है, जिसे रबी फसलों (जैसे गेहूं और सरसों) के लिए लाभकारी माना जाता है।
- अत्यधिक बारिश से फसलों को नुकसान हो सकता है।
- मौसम पर प्रभाव:
- हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी का कारण बनता है।
- उत्तरी भारत में ठंड और कोहरे की स्थिति को बढ़ाता है।
- अन्य प्रभाव:
- उच्च गति की हवाएं कभी-कभी जनजीवन को प्रभावित करती हैं।
- मैदानी इलाकों में ओलावृष्टि के कारण फसलों का नुकसान।
- कृषि पर प्रभाव:
- महत्वपूर्ण उदाहरण:
- 2020 में पश्चिमी विक्षोभ के कारण पंजाब और हरियाणा में अत्यधिक ओलावृष्टि देखी गई।
- यह घटना उत्तर भारत के जल संसाधनों को पुनः भरने में मदद करती है।
निष्कर्ष:
शीतोष्ण चक्रवात भारतीय जलवायु और कृषि पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। हालांकि यह रबी फसलों के लिए लाभकारी है, लेकिन इसकी तीव्रता में वृद्धि से नुकसान भी हो सकता है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को देखते हुए इसके दीर्घकालिक प्रभावों का अध्ययन आवश्यक है।
प्रश्न 20: भारत की खनिज विकास नीति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
परिचय:
भारत की खनिज विकास नीति का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों का सतत और न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित करना है। यह नीति देश के औद्योगिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के संतुलन पर आधारित है।
मुख्य उत्तर:
- खनिज विकास नीति का उद्देश्य:
- खनिज संसाधनों का अन्वेषण और दोहन।
- खनन क्षेत्र में विदेशी निवेश को बढ़ावा देना।
- पर्यावरणीय नियमों का पालन करते हुए खनन।
- मुख्य विशेषताएं:
- खनिज (संशोधन) अधिनियम 2015: इस अधिनियम ने खनिज क्षेत्र में पारदर्शिता और निजी निवेश को प्रोत्साहित किया।
- खनिज अन्वेषण नीति: नवीनतम तकनीकों का उपयोग करके खनिज भंडारों की खोज।
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी: खनन कार्यों से प्रभावित समुदायों को रोजगार और मुआवजा प्रदान करना।
- सतत विकास: पर्यावरणीय स्थिरता को प्राथमिकता देना।
- भारत में खनिज संपदा का महत्व:
- भारत कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट और चूना पत्थर जैसे खनिजों का प्रमुख उत्पादक है।
- खनिज क्षेत्र का GDP में लगभग 2.5% योगदान है।
- इस क्षेत्र से लाखों लोगों को रोजगार मिलता है।
- चुनौतियां:
- अवैध खनन और पर्यावरणीय क्षति।
- खनिज संसाधनों का असमान वितरण।
- स्थानीय समुदायों का विस्थापन।
- सरकार के प्रयास:
- खनिज सुरक्षा निधि का गठन।
- सतत विकास हेतु खनिज क्षेत्र में अनुसंधान और विकास।
निष्कर्ष:
भारत की खनिज विकास नीति ने खनन क्षेत्र में प्रगति की है, लेकिन पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। नीति का उद्देश्य सतत विकास को सुनिश्चित करना और देश की औद्योगिक आवश्यकताओं को पूरा करना है।