UPSC Hindi medium के उम्मीदवारों के साथ UPSC में होता भेदभाव: एक विश्लेषण
आंकड़ों की जुबानी एक चौंकाने वाली कहानी सामने आती है। 2009 में जहां हिंदी माध्यम से मेन्स परीक्षा देने वाले उम्मीदवारों की संख्या 4,861 थी, वह 2022 में घटकर मात्र 491 रह गई। यह 90% की भारी गिरावट है। आइए इस गिरावट के पीछे के कारणों और परिवर्तनों को समझें:
यह डाटा UPSC की ऑफिशल वेबसाइट की Official Reports से बनाया गया है आप चाहें तो यहां पर जा करके चेक कर सकते हैं
YEAR | हिंदी माध्यम से MAINS लिखने वाले | TOTAL |
---|---|---|
2009 | 4861 | 11504 |
2010 | 4194 | 11859 |
2011 (CSAT लाया गया) | 1682 | 11230 |
2012 | 1976 | 12176 |
2013 (MAINS में बदलाव हुआ) | 1453 | 14167 |
2014 | 2191 | 16279 |
2015 (CSAT को क्वालीफाइंग बनाया गया 33%) | 2439 | 14640 |
2016 | 1320 | 15142 |
2017 | 1066 | 13052 |
2018 | 889 | 10241 |
2019 | 571 | 11467 |
2020 | 486 | 10336 |
2021 | 470 | 8925 |
2022 | 491 | 12766 |
- CSAT का प्रभाव (2011):
- CSAT की शुरुआत के साथ ही हिंदी माध्यम के उम्मीदवारों की संख्या में भारी गिरावट आई
- 2010 के मुख्य परीक्षा देने वालों की संख्या 4,194 से घटकर 2011 में 1,682 हो गई – लगभग 60% की गिरावट
- CSAT में अंग्रेजी के प्रश्न और कॉम्प्रिहेंशन ने हिंदी माध्यम के छात्रों को विशेष रूप से प्रभावित किया
- मेन्स परीक्षा में बदलाव (2013):
- नई परीक्षा प्रणाली में अंग्रेजी का दबदबा बढ़ा
- हिंदी माध्यम मुख्य परीक्षा देने वालों की संख्या 1,453 तक पहुंच गई
- CSAT को क्वालीफाइंग बनाने का असर (2015):
- 33% क्वालीफाइंग के बाद अस्थायी राहत मिली
- मुख्य परीक्षा देने वालों की संख्या 2,439 तक पहुंची
- लेकिन यह राहत अल्पकालिक साबित हुई
- निरंतर गिरावट (2016-2022):
- 2016 से लगातार गिरावट का दौर
- 2022 में मात्र मुख्य परीक्षा देने वालों की संख्या 491 उम्मीदवार – यह संख्या 2009 की तुलना में 90% कम है
- कुल उम्मीदवारों की संख्या लगभग स्थिर या बढ़ी, लेकिन हिंदी माध्यम के छात्रों की संख्या में लगातार कमी
- CSAT और मेन्स में अंग्रेजी का बढ़ता प्रभाव
- हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए अतिरिक्त चुनौतियां
- तकनीकी शब्दावली का अनुवाद अक्सर भ्रामक और अस्पष्ट
निष्कर्ष: CSAT – हिंदी माध्यम उम्मीदवारों के लिए सबसे बड़ी बाधा
आंकड़ों का विश्लेषण स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि CSAT की शुरुआत ने हिंदी माध्यम के उम्मीदवारों के लिए एक विभाजक रेखा खींच दी। 2010 तक जहां मुख्य परीक्षा देने वालों की संख्या 4,000 से अधिक हिंदी माध्यम के उम्मीदवार मेन्स में सफलतापूर्वक पहुंचते थे, वहीं CSAT के आने के बाद यह संख्या धड़ाम से गिरकर मुख्य परीक्षा देने वालों की संख्या 1,682 तक पहुंच गई। यह गिरावट का सिलसिला यहीं नहीं रुका।
CSAT के प्रभाव को समझने के लिए महत्वपूर्ण बिंदु:
- 2011 (CSAT की शुरुआत): मुख्य परीक्षा देने वालों की संख्या 4,194 से घटकर 1,682 हो गई
- 2015 में CSAT को क्वालीफाइंग बनाया गया, लेकिन यह अपर्याप्त कदम साबित हुआ
- 2022 तक संख्या घटकर मात्र मुख्य परीक्षा देने वालों की संख्या 491 रह गई
CSAT की समस्याएं:
- अंग्रेजी कॉम्प्रिहेंशन का दबाव
- शहरी और अंग्रेजी माध्यम के छात्रों को अनुचित लाभ
- ग्रामीण और हिंदी माध्यम के छात्रों का मनोबल तोड़ने वाला
अंतिम निष्कर्ष: CSAT को पूरी तरह से हटाए बिना हिंदी माध्यम के उम्मीदवारों की स्थिति में कोई सुधार संभव नहीं है। 2009-10 के आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि CSAT से पहले हिंदी माध्यम के उम्मीदवारों को समान अवसर मिलता था। CSAT के कारण न केवल प्रतिभाशाली छात्र UPSC से दूर हो रहे हैं, बल्कि प्रशासनिक सेवाओं में भाषाई विविधता भी कम हो रही है। यदि वास्तव में हिंदी माध्यम के छात्रों को न्याय दिलाना है और UPSC में समानता लानी है, तो CSAT को पूरी तरह से समाप्त करना ही एकमात्र विकल्प है। इसके बिना किए गए सभी सुधार केवल सतही साबित होंगे और हिंदी माध्यम के छात्रों की वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं कर पाएंगे।
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