The Illusion of UPSC SSC Coaching : Aspirants की मेहनत पर धंधा करने वाले चोरों की कहानी

The Illusion of UPSC SSC Coaching : Aspirants की मेहनत पर धंधा करने वाले चोरों की कहानी

भारत में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी और कोचिंग संस्थानों की भूमिका पर एक गहरी चर्चा करना आवश्यक है। एक बच्चा नर्सरी से लेकर ग्रेजुएशन तक शिक्षा प्राप्त करता है। इस दौरान वह अपने माता-पिता, स्कूल के शिक्षकों, मित्रों, किताबों और जीवन के विभिन्न अनुभवों से शिक्षा ग्रहण करता है। उसकी सफलता का आधार केवल किताबें या शिक्षण संस्थान नहीं होते, बल्कि उसका परिवेश, संघर्ष, और जीवन जीने का तरीका उसे सफलता के शिखर तक पहुंचाने में मदद करता है।

The Illusion of UPSC SSC Coaching
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कोचिंग का भ्रमजाल

आज के समय में कोचिंग संस्थान यह दावा करते हैं कि उनके यहां से इतने IAS,PCS या अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के सफल उम्मीदवार निकले हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि इन संस्थानों में दाखिला लेने वाले हजारों विद्यार्थियों में से केवल 1% से भी कम सफल हो पाते हैं। यह सफल उम्मीदवार पहले से ही मेहनती, आत्मनिर्भर और योग्य होते हैं। कोचिंग संस्थान उनकी सफलता में कुछ प्रतिशत योगदान जरूर कर सकते हैं, लेकिन यह कहना कि सफलता केवल कोचिंग की वजह से है, एक भ्रामक प्रचार है।

अगर कोचिंग संस्थान इतनी प्रभावशाली होते, तो फिर हर छात्र जो वहां दाखिला लेता है, सफल क्यों नहीं हो पाता? इसका कारण यह है कि सफलता का असली श्रेय उस विद्यार्थी की मेहनत, परिस्थितियों और व्यक्तिगत गुणों को जाता है, न कि किसी 4 महीने की कोचिंग को।

प्रचार पर रोक का कानून आवश्यक

यह एक गंभीर मुद्दा है कि कोचिंग संस्थान छात्रों से भारी शुल्क लेने के बाद उनकी सफलता का श्रेय लेकर अपना प्रचार करते हैं। किसी भी कोचिंग संस्थान को यह अधिकार नहीं होना चाहिए कि वह छात्रों की सफलता का उपयोग अपने लाभ के लिए करे। इसके लिए एक सख्त कानून बनाया जाना चाहिए जो कोचिंग संस्थानों को इस तरह के प्रचार से रोक सके। यह कानून सुनिश्चित करे कि छात्रों की सफलता का श्रेय उनकी व्यक्तिगत मेहनत और संघर्ष को दिया जाए, न कि किसी संस्थान को।

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सफलता का असली आधार

  1. पारिवारिक समर्थन: विद्यार्थी को जो शुरुआती मार्गदर्शन और प्रेरणा उसके माता-पिता और परिवार से मिलती है, वही उसकी नींव होती है।
  2. शिक्षा प्रणाली: स्कूल और कॉलेज में प्राप्त शिक्षा उसे एक बौद्धिक आधार देती है।
  3. व्यक्तिगत संघर्ष: प्रत्येक छात्र की अपनी परिस्थितियां, जीवन की चुनौतियां और उनका सामना करने का तरीका उसकी सफलता में अहम भूमिका निभाता है।
  4. मित्र और सहायक: दोस्त और सहपाठी भी मानसिक समर्थन और प्रेरणा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

कोचिंग उद्योग का व्यापारिक पहलू

कोचिंग संस्थान केवल एक व्यापार है। वे भारी-भरकम फीस लेकर विद्यार्थियों को सपने दिखाते हैं और चयनित छात्रों का विज्ञापन कर अपनी ब्रांडिंग करते हैं

  • असफलता का सच: 99% से अधिक छात्र असफल हो जाते हैं। इनका जिक्र कभी नहीं होता।
  • आर्थिक बोझ: कोचिंग की महंगी फीस गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों पर भारी आर्थिक दबाव डालती है।
  • भ्रामक प्रचार: सफल छात्रों को दिखाकर बाकी विद्यार्थियों को आकर्षित किया जाता है, जबकि असफल छात्रों के प्रयासों और संघर्षों की कोई चर्चा नहीं होती।

समाज के दर्द को समझने की जरूरत

यह एक असमान प्रक्रिया है जिसमें केवल 1% से भी कम लोग सफल होते हैं और उनकी सफलता को दिखाकर बाकी छात्रों को भ्रमित किया जाता है। इससे विद्यार्थियों और उनके परिवारों पर मानसिक और आर्थिक दबाव बढ़ता है। यह प्रक्रिया एक असीमित चक्र बन जाती है, जो निरंतर चलता रहता है।

समाधान क्या है?

  1. व्यक्तिगत प्रयास पर जोर: विद्यार्थियों को यह समझना चाहिए कि उनकी सफलता का मुख्य आधार उनकी खुद की मेहनत और दृढ़ संकल्प है।
  2. पारदर्शिता: कोचिंग संस्थानों को अपने असफल छात्रों का भी डेटा साझा करना चाहिए।
  3. समग्र शिक्षा प्रणाली: सरकार और समाज को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जहां विद्यार्थियों को कोचिंग पर निर्भर न रहना पड़े।
  4. मनोवैज्ञानिक समर्थन: असफल विद्यार्थियों के लिए मानसिक समर्थन और काउंसलिंग का प्रावधान होना चाहिए।
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निष्कर्ष

कोचिंग संस्थान शिक्षा के व्यवसायिकरण का एक हिस्सा हैं। यह विद्यार्थियों और उनके परिवारों की आशाओं और संघर्षों को भुनाने का एक तरीका है। जरूरत है कि इस चक्र को तोड़ा जाए और सफलता को केवल कोचिंग के चश्मे से देखने के बजाय विद्यार्थियों के समग्र विकास और उनके संघर्षों के संदर्भ में समझा जाए। इसके साथ ही, छात्रों की मेहनत और संघर्ष को उनका व्यक्तिगत अधिकार मानते हुए, कोचिंग संस्थानों के भ्रामक प्रचार पर रोक लगाने वाले कानून की भी आवश्यकता है।

Goldej Kumar

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